Tuesday, January 19, 2010

दिल की दिल में

दिल की दिल में न रह जाये यह कहानी कह लो


चाहे  दो  हर्फ़  लिखो  चाहे  ज़बानी  कह  लो




मैंने  मरने  की  दुआ  मांगी थी  वो पूरी न हुई


बस  इसको  मेरे  जीने  की  कहानी  कह  लो




सर  सरे   वक़्त  उड़ा  ले  गई   रूदाद  हयात


वही  अवराक़  जिन्हें  अहदे  जवानी  कह लो




तुमसे  कहने  की  नहीं  बात  मगर कह बैठा


अब  इसे  मेरी  तबियत  की  रवानी कह लो




वही  एक  किस्सा ज़माने  को मेरा याद रहा


वही  एक  बात  जिसे  आज  पुरानी कह लो




हम पे जो बीती है बस उसको रक़म करते हैं


आपबीती  कहो  या  मरसिया  ख़्वानी  कह लो



                             : ख़लीलुर्रहमान "आज़मी"
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सर सरे वक़्त : आंधी के वक्‍त
रूदाद : कहानी
अवराक़ : प्रष्‍ठ
अहदे जवानी : जवानी का ज़माना
रवानी : प्रवाह
रक़म : लिखना
मरसिया ख़्वानी : शोकगीत पढ़ना


6 comments:

अजय कुमार said...

वाह क्या बात है , उम्दा गजल

Arshad Ali said...

wah!

Janab man ko chhu gaya.

मनोज कुमार said...

ग़ज़ल दिल को छू गई।
बेहद पसंद आई।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

सिद्दीक़ी साहब, आदाब
बेहतरीन कलाम पढ़वाने के लिये
शुक्रिया जनाब
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

सहसपुरिया said...

shukriya
subhanallah

Himanshu Pandey said...

बेहद खूबसूरत । आभार ।

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