दिल की दिल में न रह जाये यह कहानी कह लो
चाहे दो हर्फ़ लिखो चाहे ज़बानी कह लो
मैंने मरने की दुआ मांगी थी वो पूरी न हुई
बस इसको मेरे जीने की कहानी कह लो
सर सरे वक़्त उड़ा ले गई रूदाद हयात
वही अवराक़ जिन्हें अहदे जवानी कह लो
तुमसे कहने की नहीं बात मगर कह बैठा
अब इसे मेरी तबियत की रवानी कह लो
वही एक किस्सा ज़माने को मेरा याद रहा
वही एक बात जिसे आज पुरानी कह लो
हम पे जो बीती है बस उसको रक़म करते हैं
आपबीती कहो या मरसिया ख़्वानी कह लो
: ख़लीलुर्रहमान "आज़मी"
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सर सरे वक़्त : आंधी के वक्त
रूदाद : कहानी
अवराक़ : प्रष्ठ
अहदे जवानी : जवानी का ज़माना
रवानी : प्रवाह
रक़म : लिखना
मरसिया ख़्वानी : शोकगीत पढ़ना
6 comments:
वाह क्या बात है , उम्दा गजल
wah!
Janab man ko chhu gaya.
ग़ज़ल दिल को छू गई।
बेहद पसंद आई।
सिद्दीक़ी साहब, आदाब
बेहतरीन कलाम पढ़वाने के लिये
शुक्रिया जनाब
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
shukriya
subhanallah
बेहद खूबसूरत । आभार ।
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महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।