बूँद पानी की हूँ थोड़ी सी हवा है मुझ में
उस बिज़ाआत पे भी क्या ज़रफ़ा इना है मुझ में
ये जो एक हश्र शबो रोज़ बपा है मुझ में
हो न हो कुछ और भी मेरे सिवा है मुझ में
सफ़ाए दहर पे एक राज़ की तहरीर हूँ मैं
हर कोई पढ़ नहीं सकता जो लिखा है मुझ में
कभी शबनम की लताफत कभी शोले की लपक
लम्हा लम्हा ये बदलता हुआ क्या है मुझ में
शहर का शहर हो जब अरसाए मेहशर की तरह
कौन सुनता है जो कोहराम मचा है मुझ में
वक़्त ने कर दिया "साबिर" मुझे सहरा बा किनार
एक ज़माने में समंदर भी बहा है मुझ में
: साबिर
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बिज़ाअत : योग्यता
ज़रफ़ा : हौसला
इना : लगाम
हश्र : हालात
बपा : बीतना
सफ़ाए दहर : दुनिया के पन्ने
तहरीर : लिखाई
लताफ़त : कोमलता
अरसाए : मैदान
महशर : कयामत, प्रलय
कोहराम : कोलाहल
सेहरा बा किनार : रेत का किनारा
ये जो एक हश्र शबो रोज़ बपा है मुझ में
हो न हो कुछ और भी मेरे सिवा है मुझ में
सफ़ाए दहर पे एक राज़ की तहरीर हूँ मैं
हर कोई पढ़ नहीं सकता जो लिखा है मुझ में
कभी शबनम की लताफत कभी शोले की लपक
लम्हा लम्हा ये बदलता हुआ क्या है मुझ में
शहर का शहर हो जब अरसाए मेहशर की तरह
कौन सुनता है जो कोहराम मचा है मुझ में
वक़्त ने कर दिया "साबिर" मुझे सहरा बा किनार
एक ज़माने में समंदर भी बहा है मुझ में
: साबिर
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बिज़ाअत : योग्यता
ज़रफ़ा : हौसला
इना : लगाम
हश्र : हालात
बपा : बीतना
सफ़ाए दहर : दुनिया के पन्ने
तहरीर : लिखाई
लताफ़त : कोमलता
अरसाए : मैदान
महशर : कयामत, प्रलय
कोहराम : कोलाहल
सेहरा बा किनार : रेत का किनारा
6 comments:
ये जो एक हश्र शबो रोज़ बपा है मुझ में
हो न हो कुछ और भी मेरे सिवा है मुझ में
खूबसूरत बयान।
अंधेरों में तस्वीरें ना खिंचवाया करें, रोशनी के लिये ये अपशकुन होता है
जनाब आपके काम को सलाम. हमने आपके इस ब्लॉग को सब्सक्राइब कर लिया है. यानी आपकी हर पोस्ट हमारे ईमेल बक्से में आएगी,
सिद्दीक़ी साहब, आदाब
इस खूबसूरत कलाम के लिये
साबिर साहब और आपको
दिल से मुबारकबाद
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति ! आभार ।
आप सब की मुहब्बत और होसला-अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया.
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महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।