मेरी ज़ुबां से मेरी दास्तां सुनो तो सही
यकीं करो न करो मेहरबां सुनो तो सही
चलो ये माना कि मुजरिमे मुहब्बत हैं
हमारे जुर्म का हमसे बयां सुनो तो सही
बनोगे मेरे दोस्त तुम, दुश्मनों एक दिन
मेरे हयात की आबो गुहा सुनो तो सही
लबों को सी के जो बैठे हैं महफ़िल में
कभी उनकी भी खामोशियां सुनो तो सही
-------------------------------------------------
-------------------------------------
-------------------------------------------------
-------------------------------------
1 comments:
लबों को सी के जो बैठे हैं महफ़िल में
कभी उनकी भी खामोशियां सुनो तो सही
एक से एक लाजवाब शेरों की ये ग़ज़ल पढ़ कर बस वाह वाह करते रहने का मन कर रहा है।
Post a Comment
महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।