Thursday, December 17, 2009

एक शायर

मैं तो एक कच्चा घरोंदा हूं भरी बरसात मैं

कौन  मेरा  साथ देगा  इस अंधेरी रात मैं


दिल से मौजे दर्द उठे भी तो रो सकता नहीं

दर्द  की  दीवार  हाईल है  मेरे जज़बात  मैं


काटता  जाता  रहूं  बनते जाते  हैं  हिसार

मैं बे ई जहदे मुसलसल क़ैद हूं हालात मैं


तुम सिरिशते ग़म कहो उसको के सोज़े आगाही

हम दुखों की बात करते हैं ख़ुशी की बात में


                                                                                        - सैफ़ ज़ुल्फ़ी
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मौजे दर्द -  दर्द की लहर


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