जीना है कैसे मुझको तन्हा न फैसला कर
ख़ुशियों से राय ले ले ग़म से भी मशवरा कर
दुनिया की भीड़ में मैं गुम हो के रह गया हूं
ऎ आईने मुझे तू माज़ी ज़रा अता कर
थक कर न बैठ जाना राहों में ऎ मुसाफिर
मंज़िल तुझे मिलेगी चलने का हौसला कर
यादों के गुलिस्तां से ख़शबू सी आ रही है
क्यों दूर हो गये तुम मेरे क़रीब आ कर
कर लेना लाख कोशिश तुम भूलने की मुझको
याद आयेंगे तुम्हें हम देखो ज़रा भुलाकर
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माज़ी - बीता हुआ कल, इतिहास
2 comments:
थक कर न बैठ जाना राहों में ऎ मुसाफिर
मंज़िल तुझे मिलेगी चलने का हौसला कर
ग़ज़ल पूरी अच्छी लगी।
कर लेना लाख कोशिश तुम भूलने की मुझको
याद आयेंगे तुम्हें हम देखो ज़रा भुलाकर
खूब।
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महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।