निगाहों का मरकज़ बना जा रहा हूं
मुहब्बत के हांथों लुटा जा रहा हूं
न जाने कहां से, न जाने किधर को
बस एक अपनी धुन में उड़ा जा रहा हूं
मुझे रोक सकता हो कोई तो रोके
कि छुपकर नहीं बरमला जा रहा हूं
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बरमला - खुल्लम खुल्ला
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सुन तो ए दिल यह बरहमी क्या है
आज कुछ दर्द में कमी क्या है
जिस्म महदूद , रूह ला - महदूद
फिर यह रफ्ते बाहमी क्या है
ऎ फलक ! अब तो तुझ को दिखला दूं
ज़ोरे बाज़ु - ए -बेकसी क्या है
हम नहीं जानते मुहब्बत में
रंज क्या चीज़ है, ख़ुशी क्या है
एक नफ़स ख़ुल्द एक नफ़स दोज़ख
कोई पूछे ये ज़िन्दगी क्या है
- जिगर मुरादाबादी
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- जिगर मुरादाबादी
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बरहमी : गुस्सा
महदूद : सीमित
ला-महदूद : असीमित
रब्ते बाहमी : आपसी संबध
नफ़स : इच्छा, चाहत
ख़ुल्द : जन्नत, स्वर्ग
दोज़ख : जहन्नम, नर्क
3 comments:
ati uttam par isme hindi me comment k youn nahi hote hain?
अंकित जी शुक्रिया
अब तक कई कमेंट हिन्दी में ही आये हैं।
शायद सेटिंग में कुछ परेशानी है आप भी देखें मैं भी देखता हूं।
मिलते रहियेगा ।
क्या खूबसूरत अलफ़ाज़ हैं . वैसे 'जिगर' साहब ने अपने बारे में में कुछ यूं भी फ़रमाया है :
-- सब को मारा जिगर के शेरों ने
और जिगर को शराब ने मारा !
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महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।