Thursday, November 26, 2009

एक शायर


कहीं ऎसा न हो दामन जला लो

हमारे आंसुऔं पर ख़ाक डालो


 

मनाना ही ज़रूरी है तो फिर तुम

हमें सबसे ख़फ़ा हो कर मना लो

 


बहुत रोई हुई लगती हैं आंखें

मेरी ख़ातिर ज़रा काजल लगा लो

 


अकेलेपन से खौ़फ आता है मुझको

कहां हो मेरे ख़ाबों - ख़यालों



बहुत मायूस बैठा हूं मैं तुमसे

कभी आकर मुझे हैरत में डालो ॥



                           - लियाकत अली अज़ीम

2 comments:

Randhir Singh Suman said...

बहुत मायूस बैठा हूं मैं तुमसे

कभी आकर मुझे हैरत में डालो ॥

Anonymous said...

बहुत खूब।

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महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।