कहीं ऎसा न हो दामन जला लो
हमारे आंसुऔं पर ख़ाक डालो
मनाना ही ज़रूरी है तो फिर तुम
हमें सबसे ख़फ़ा हो कर मना लो
बहुत रोई हुई लगती हैं आंखें
मेरी ख़ातिर ज़रा काजल लगा लो
अकेलेपन से खौ़फ आता है मुझको
कहां हो ऎ मेरे ख़ाबों - ख़यालों
बहुत मायूस बैठा हूं मैं तुमसे
कभी आकर मुझे हैरत में डालो ॥
- लियाकत अली अज़ीम
2 comments:
बहुत मायूस बैठा हूं मैं तुमसे
कभी आकर मुझे हैरत में डालो ॥
बहुत खूब।
Post a Comment
महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।