Wednesday, November 18, 2009

दिल का रोना ठीक नहीं

दिल का रोना ठीक नहीं है,

मुंह को कलेजा आने दो

थमते थमते अश्क थमेंगे,

नासेह को समझाने दो

कहते ही कहते हाल कहेंगे,

ऐसी तुम्हें क्या जल्दी है

दिल को ठिकाने होने दो,

और आप में हमको आने दो

खु़द से गिरेबां फटते थे,

अक्सर चाक हवा में उड़ते थे

अब के जुनूं को होश नहीं है,

आई बहार तो आने दो

अगर दिल गुमगुश्ता में,

ठंडी आहें भरता था

हंस के सितमगर कहता क्या है,

बात ही क्या है जाने दो

दिल के असर को लूट लिया है,

शोख़ निगाह एक काफिर ने

कोई ना इसको रोने से रोको,

आग लगी है बुझाने दो

- असर लखनवी

------------------------------------------------------

नासेह - नसीहत देने वाला

गुमगुश्ता - डूबा हूआ

सितमगर - अत्याचारी

काफिर - नास्तिक

1 comments:

मनोज कुमार said...

खु़द से गिरेबां फटते थे,

अक्सर चाक हवा में उड़ते थे

बेहतरीन। बधाई।

Post a Comment

महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।