दिल का रोना ठीक नहीं है,
मुंह को कलेजा आने दो
थमते थमते अश्क थमेंगे,
नासेह को समझाने दो
कहते ही कहते हाल कहेंगे,
ऐसी तुम्हें क्या जल्दी है
दिल को ठिकाने होने दो,
और आप में हमको आने दो
खु़द से गिरेबां फटते थे,
अक्सर चाक हवा में उड़ते थे
अब के जुनूं को होश नहीं है,
आई बहार तो आने दो
अगर दिल गुमगुश्ता में,
ठंडी आहें भरता था
हंस के सितमगर कहता क्या है,
बात ही क्या है जाने दो
दिल के असर को लूट लिया है,
शोख़ निगाह एक काफिर ने
कोई ना इसको रोने से रोको,
आग लगी है बुझाने दो
- असर लखनवी
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नासेह - नसीहत देने वालागुमगुश्ता - डूबा हूआसितमगर - अत्याचारीकाफिर - नास्तिक
1 comments:
खु़द से गिरेबां फटते थे,
अक्सर चाक हवा में उड़ते थे
बेहतरीन। बधाई।
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महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।