उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी तरह इस शहर में तन्हा होगा
इतना सच बोल कि होंठों का तबस्सुम न बुझे
रोशनी ख़त्म न कर आगे अंधेरा होगा
प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली
जिसको पीछे कहीं छोड़ आये वो दरिया होगा
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिसको भी पास से देखोगे अकेला होगा
मेरे बारे में कोई राय तो होगी उसकी
उसने मुझको भी कभी तोड़ के देखा होगा
- निदा फ़ाज़ली
-----------------------------------------------
---------------------------
होंठों का तबस्सुम - होंठों की मुस्कुराहट
शरीक - शामिल
2 comments:
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिसको भी पास से देखोगे अकेला होगा
बहुत खूब।
बहुत बढ़िया बहुत धन्यवाद इसे हिंदी में लिखने के लिए और कविताएँ जोड़ते रहें।
Post a Comment
महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।