धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो
सिर्फ आंखों से ही दुनिया नहीं देखी जाती
दिल की धड़कन को भी बीनाई बनाकर देखो
पत्थरों में भी ज़बां होती है दिल होते हैं
अपने घर की दरो-ओ-दीवार सजा कर देखो
वो सितारा है चमकने दो यूं ही उसे आंखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बना कर देखो
फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है
चांद जब चमके ज़रा हांथ बढ़ा कर देखो
- निदा फ़ाज़ली
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बीनाई - आंखों की रौशनी
दर-ओ-दीवार - दरवाज़े और दीवारें
2 comments:
nice
काफी अच्चछा लगा पढ़कर। इसमें अद्भुत ताजगी है।
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महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।