Saturday, December 12, 2009

एक शायर

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो

ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो


सिर्फ आंखों से ही दुनिया नहीं देखी जाती

दिल की धड़कन को भी बीनाई बनाकर देखो


पत्थरों  में  भी  ज़बां होती है दिल  होते हैं

अपने घर की दरो-ओ-दीवार सजा कर देखो


वो सितारा है चमकने दो यूं ही उसे आंखों में

क्या  ज़रूरी  है  उसे जिस्म  बना कर  देखो


फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है

चांद  जब  चमके  ज़रा हांथ  बढ़ा कर  देखो


                                                                                   - निदा फ़ाज़ली

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बीनाई - आंखों की रौशनी

दर-ओ-दीवार - दरवाज़े और दीवारें


2 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

मनोज कुमार said...

काफी अच्चछा लगा पढ़कर। इसमें अद्भुत ताजगी है।

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