Tuesday, December 22, 2009

दुनिया सजी हुई है

दुनिया   सजी  हुई  है   बाज़ार   की तरह

हम  भी  चलेंगे  आज  ख़रीदार  की तरह


टूटे  हों  या  पुराने हों  अपने तो  हैं यही

ख़्वाबों को जमा करता हूं आसार  की तरह


यह  और बात  है कि  नुमाया  रहूं मगर

दुनिया  मुझे  छुपाए  है  आज़ार  की तरह


मेरी किताबे ज़ीस्त तुम एक बार तो पढ़ो

फिर  चाहे फैंक दो किसी अख़बार की तरह


अब ज़िन्दगी की धूप भी सीधा करेगी क्या

अब तक तो कज़ रहा तेरी दस्तार की तरह

                                                                            - सबा जायसी
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आसार - खंडहर

नुमाया - उजागर

आज़ार - पीढ़ा

ज़ीस्त - ज़िन्दगी

कज - टेढ़ा

दस्तार - पगड़ी

2 comments:

kishore ghildiyal said...

bahut achhi lagi

मनोज कुमार said...

दुनिया सजी हुई है बाज़ार की तरह
हम भी चलेंगे आज ख़रीदार की तरह
बहुत उम्दा ग़ज़ल। शुक्रिया।

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