दुनिया सजी हुई है बाज़ार की तरह
हम भी चलेंगे आज ख़रीदार की तरह
टूटे हों या पुराने हों अपने तो हैं यही
ख़्वाबों को जमा करता हूं आसार की तरह
यह और बात है कि नुमाया रहूं मगर
दुनिया मुझे छुपाए है आज़ार की तरह
मेरी किताबे ज़ीस्त तुम एक बार तो पढ़ो
फिर चाहे फैंक दो किसी अख़बार की तरह
अब ज़िन्दगी की धूप भी सीधा करेगी क्या
अब तक तो कज़ रहा तेरी दस्तार की तरह
- सबा जायसी
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आसार - खंडहर
नुमाया - उजागर
आज़ार - पीढ़ा
ज़ीस्त - ज़िन्दगी
कज - टेढ़ा
दस्तार - पगड़ी
दुनिया मुझे छुपाए है आज़ार की तरह
मेरी किताबे ज़ीस्त तुम एक बार तो पढ़ो
फिर चाहे फैंक दो किसी अख़बार की तरह
अब ज़िन्दगी की धूप भी सीधा करेगी क्या
अब तक तो कज़ रहा तेरी दस्तार की तरह
- सबा जायसी
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आसार - खंडहर
नुमाया - उजागर
आज़ार - पीढ़ा
ज़ीस्त - ज़िन्दगी
कज - टेढ़ा
दस्तार - पगड़ी
2 comments:
bahut achhi lagi
दुनिया सजी हुई है बाज़ार की तरह
हम भी चलेंगे आज ख़रीदार की तरह
बहुत उम्दा ग़ज़ल। शुक्रिया।
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महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।