-: बशी़र बद्र :-
किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सताऊंगा
ज़माना देखेगा और मैं न देख पाऊंगा
हयातो मौत फिराको विसाल सब यक़ज़ा
मैं एक रात में कितने दिये जलाऊंगा
पला बढ़ा हूं तक इन्हीं अंधेरों में
मैं तेज़ धूप से कैसे नज़र मिलाऊंगा
मेरे मिजाज़ की मादराना फितरत है
सवेरे सारी अज़ीयत मैं भूल जाऊंगा
तुम एक पेड़ से बाबस्ता हो मगर मैं तो
हवा के साथ दूर दूर जाऊंगा
मेरा ये अहद है मैं आज शाम होने तक
जहां से रिज़्क लिखा है वहीं से लाऊंगा
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ये चराग़ बे नज़र है सितारा बे ज़ुबां है
अभी तुम से मिलता जुलता कोई दूसरा कहां है
वही शख़्स जिस पे अपने दिलो जां निसार कर दूं
वो अगर ख़फ नहीं है तो ज़रूर बदगुमां है
मेरे साथ चलने वाले तुझे क्या मिला सफर में
वही दुख भरी ज़मीं है वही ग़म का आसमां है
मैं इसी गुमां में बरसों बड़ा मुत्मईन रहा
तेरा जिस्म बेतग़इयुर मेरा प्यार जाविदा है
उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
मुझे रोक रोक के पूछा तेरा हमसफर कहां है
बेतग़इयुर - अपरिवर्तनशील
जाविदा - अमर
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4 comments:
bahut hee damdar.narayan narayan
urdu ki jankari kuch kam ha par ye lafz
मेरे साथ चलने वाले तुझे क्या मिला सफर में
वही दुख भरी ज़मीं है वही ग़म का आसमां है
dil ko chu gaye...
kabil-e-tareef...
bahut..khub...
Deepak "bedil"
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।