लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शम्मा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी
हो मेरे दम से यूं ही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत
ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म की शम्मा से हो मुझको मुहब्बत या रब
हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्दमन्दों से ज़ईफों से मुहब्बत करना
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस रह पर चलाना मुझको
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस रह पर चलाना मुझको......
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दर्दमन्दों - जो पीड़ा में हों
ज़ईफों - बुज़ुर्गों
2 comments:
भावावेग की स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वाभाविक परिणति दीखती है।
दिल की इतनी दुआ कबूल हो जाये तो क्या कहना .
यह नज़्म मेरे पिताजी के समय में स्कूल में बतौर सुबह की प्रार्थना गायी जाती थी
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महफ़िल में आपका इस्तक़बाल है।